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न्युरोथैरेपी के जनक डॉ. लाजपतराय मेहरा जी की संक्षिप्त जीवनी
19-20 वीं शताब्दी महान वैज्ञानिकों, गणितज्ञ, दार्शनिकों तथा अभियंताओं का कर्म युग रहा है । अद्भुत गणितज्ञ श्रीनिवासन रामानुजन और स्वामी विवेकानंद के अलावा बेंजामिन फ्रैंकलिन, हेनरी फोर्ड, थॉमस अल्वा एडिसन एवं आधुनिक काल के डॉक्टर भाभा, हरगोविंद खुराना, स्टीफन हाकिंग, "भारत के मिसाइल मैन" तथा भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जैसे नाम इस श्रृंखला में आते हैं । इसी कड़ी में नाम आता है प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद डॉक्टर लाजपतराय मेहरा जी का ।
इनका जन्म अमृतसर के एक कुलीन परिवार में 23 अगस्त 1932 को श्री रामगोपाल मेहरा और श्रीमती केसरा देवी की सातवीं संतान के रूप में हुआ । इस अति मानव ने एलएमएनटी नामक एक ऐसी अद्भुत चिकित्सा पद्धति का आविष्कार किया है, जिसमें कोई औषधि की आवश्यकता ही नहीं होती । इस थैरेपी के माध्यम से उन्होंने मानव जाति को उन सभी रोगों से राहत दिलाई जिन्हें पूर्णत: "असाध्य" माना जाता है। इतना ही नहीं, मानवता के प्रति निस्वार्थ और समर्पित सेवा के लिए भी वे प्रतिवध्द थे । इसीलिए अपने जीवन काल में ही वे किवदंती कहे जाने लगे थे । डॉ. लाजपतराय मेहरा द्वारा अविष्कृत अनुपम पद्धति LMNT में इन पिछले तीन दशकों में 8 लाख से भी अधिक लोगों ने लाभ उठाया है ।
11 साल के बालक लाजपतराय बचपन में एक भयानक पेट दर्द से पीड़ित थे, जो कई महीनो तक चला । उस समय पर उपलब्ध अच्छी से अच्छी चिकित्साओं के बावजूद उन्हे राहत नहीं मिली। 8 से 10 महीनो के कष्ट के बाद दैवी कृपा से उनकी मुलाकात एक ऐसे बूढ़े आदमी से हुई जिन्होंने उसे पेट के बल लेटने के लिए कहा और एक अनजान सरल देसी तकनीक द्वारा उनके हाथों और पैरों को एक विशेष तरीके से खींच कर लगभग तुरंत ही उनके पेट दर्द से उन्हें राहत दिला दी।
बचपन से ही दूसरों की सहायता करना बालक लाजपत राय का स्वाभाविक गुण था। अपनी उम्र के अन्य बच्चों के विपरीत, बालक लाजपतराय ने इस घटना को विस्मृत नहीं किया । वे लगातार इस बात पर ध्यान करने लगे कि, कैसे एक बहुत ही सामान्य एवं सरल तरीके से उनके शरीर में यह चमत्कार हो गया इतना करने से । इतना ही नहीं, बालक के मन में यह लालसा जाग उठी कि किस प्रकार से मैं भी अन्य लोगों को इसी तरह के दर्द से मुक्त कर सकता हूं ।
प्राचीन भारतीय पध्दती में नाभि को ही पूरे शरीर का केंद्र माना गया है। पेट के अन्य भागों के संबंध में नाभि की स्थिति में गड़बड़ी ही पाचन विकार का मुख्य कारण है । हालांकि उस बूढ़े आदमी ने अपनी सटीक तकनीक उन्हे सिखाई नहीं थी । पर बालक लाजपतराय को याद आया कि उस प्रक्रिया के दौरान उसके शरीर के कुछ बिंदुओं पर दबाव हुआ था ।
उनकी मां अक्सर पेट दर्द से पीड़ित रहती थी। जिसके लिए वह गोलियां लेती थी । तो एक बार बालक की विनती के कारण उनकी मम्मी ने उन्हे अपने दर्द से राहत देने की अनुमति दी । प्रोत्साहित होकर बालक लाजपतराय ने उस बूढे व्यक्ति की तकनीक के समान प्रभाव मां के शरीर में लाने के लिए अपने पैरों का अनुपम उपयोग करके दर्द से उन्हें छुटकारा दिलाया! अपनी नई तकनीक में माहिर होने के बाद बालक लाजपतराय अपने पड़ोस में अन्य लोगों का मुफ्त इलाज शुरू कर दिया । जल्द ही, कब्ज, पेचिस, दस्त तथा अन्य पेट संबंधी विकार से पीड़ित लोगों की भीड़ आने लगी और दूर तथा आस पास के क्षेत्र से उनके पिता जी के घर के सामने लोग लाइन लगाने लगे, जिनका वे अपने नव अविष्कृत तकनीक से बड़ी सफलता के साथ इलाज किया करते थे ।
देश का बंटवारा होने के दौरान दंगों ने प्रारंभिक अवस्था में ही उनके घर की आहुति ले ली । एक समृद्ध परिवार को अपना सभी कुछ खोकर 1947 में शरणार्थी के रूप में मुंबई आना पड़ा । परिणाम स्वरूप एक बड़े परिवार (आठ बहनों के बीच इकलौता भाई) के भरण पोषण की कठिन जिम्मेदारी ,किशोर लाजपतराय के कंधों पर आ गई थी। 11 साल की उम्र से ही रोगियों को मुफ्त इलाज करने का गुण उनकी आदत बन चुका थी । खाने पीने तक की समस्या और समाधान में व्यस्त रहने के बावजूद भी किशोर लाजपतराय मेहरा ने उस आदत को नहीं छोड़ा । अपनी दिनचर्या का अधिकतम संभव समय लोगों के उपचार में बिताने लगे । इस प्रक्रिया के दौरान उसने कई नई तकनीक का आविष्कार किया और दवाइयां के बिना कई प्रकार की बीमारियों से लोगों का इलाज करने की एक अद्भुत पद्धति को विकसित किया जिसे "लाजपतराय मेहरा न्युरोथेरेपी" नाम दिया गया । जिसे हम आज न्युरोथेरेपी के नाम से जानते है ।
डॉ. लाजपतराय मेहरा जी की औपचारिक शिक्षा दसवीं कक्षा तक ही हुई थी । लेकिन वे भारत के विभाजन के कारण अमृतसर में परीक्षा नहीं दे पाये । मुंबई में आने के बाद शरणार्थी शिवरो में निशुल्क सेवा दे रहे थे, इसीलिए परीक्षा में नहीं बैठने के बावजूद मैट्रिक प्रमाण पत्र से सम्मानित किए गए। लेकिन परीक्षा-बगैर प्रमाण पत्र प्राप्त करना उनके स्वाभिमान पर ठेस थी । इसीलिए करीब 4 साल बाद परीक्षा के लिए बैठे और सफलतापूर्वक दसवीं कक्षा पूरी की । पारिवारिक परिस्थितियों के कारण आगे की पढ़ाई औपचारिक रूप से संभव नहीं थी। लेकिन कोई भी कठिनाई उनके ज्ञान अर्जन की लालसा के लिए वाधा नहीं बन सकी । बहुत ही कम उम्र से ही प्राकृतिक उपचार एवं शरीर विज्ञान से संबंधित पुस्तकों पर स्वाध्याय एवं गहन चिंतन करने लगे । कालांतर में उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा में प्रमाण पत्र भी प्राप्त किया । सन 1986 से उन्होंने मुंबई के बांद्रा स्थित एक क्लीनिक में अपनी पद्धति से रोगियों को सफलतापूर्वक उपचार करना प्रारंभ किया। हजारो रोगियो के उपचार से प्राप्त अनुभव को वैदिक दिनचर्या तथा शरीर क्रिया विज्ञान के सिद्धांतों के साथ एक अनोखे दृष्टिकोण से एकत्रित करके रोगों के इलाज के लिए एक ऐसी चिकित्सा पद्धति का निर्माण कर दिया, जिसका आधुनिक समय में कोई विकल्प ही नहीं है ।
वे संपूर्ण लगन से लोगों का उपचार करने लगे । तब उनके मन में विचार आया कि दूरस्थ क्षेत्रों में रह रहे रोगियों की सेवा के लिए उन्हें इस विधि में प्रशिक्षित एवं पारंगत युवाओं की आवश्यकता है। उन्होंने योग्य और कर्मठ युवाओं को प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया और बाद में उनके छात्रों और शुभचिंतकों द्वारा उनकी इस दैवीय खोज को डॉक्टर लाजपतराय मेहरा की न्युरोथेरेपी (एलएमएनटी) का नाम दिया गया। अपने कुछ समर्पित विद्यार्थियों एवं अनुयायियों के साथ 3000 से ज्यादा कुशल युवाओं को अपनी पद्धति में पारंगत कर चुके हैं, पूरे देश में 100 से अधिक निशुल्क न्यूरोथेरपी शिविरों का आयोजन कर चुके हैं और भारत में ही नहीं अभी तो विदेशों में भी काफी लोग इस पद्धति से लाभान्वित हुए हैं ।
18 अक्टूबर 2017 को, छोटी दिवाली के दिन, यह दिव्य कर्मयोगी अपने छात्रों को डॉ. लाजपतराय मेहरा न्युरोथैरेपी आश्रम सूर्यमाल (महाराष्ट्र) में यह आश्वासन देने के बाद अपने स्वर्गीय निवास के लिए रवाना हो गए कि जब भी किसी थेरेपिस्ट को अपनी चिकित्सा के माध्यम से रोगियों के इलाज में कोई समस्या आएगी तो वे हमेशा उनके लिए उपलब्ध रहेंगे।
हम, उनके छात्रों और अनुयायियों ने उनके दुखद निधन के ६ वर्ष के बाद भी इस सच्चाई का अनुभव किया है और करते आ रहे हैं। मरीज़ का इलाज करते समय अगर हमें कोई समस्या आती है तो हम सिर्फ गुरु जी को ध्यान में लाते हैं तो हमें ईश्वरीय प्रेरणा मिलती है, जिससे मरीज़ को अच्छे परिणाम मिलते हैं।
मेरे इस वेबसाइट https://neurotherapyedu.in/ के द्वारे डॉ. लाजपतराय मेहरा से प्राप्त ज्ञान के कुछ कणों को खुले हाथ सभी थेरेपिस्ट को साझा करने का प्रयास कर रहा हूँ. आशा है कि मेरा यह प्रयास अनेक लोगों को गुरुजी की इस अद्भुत चिकित्सा पद्धति के और आकर्षित करने में मददगार रहे !
जय गुरुजी ! जय न्यूरोथेरपी!
न्युरोथैरेपी एक भारतीय उपचार पद्धती है ।हमारे शरीर के अंदर ही उसे ठीक करने के लिए हर प्रकार की केमीकल बनाने की क्षमता होती है ,पर किसी कारणवश जैसे आहार-विहार पर नियंत्रण ना हो ,गलत तरीके से उठना बैठना ,दूषित वातावरण ,मानसिक तनाव ,अपने सामर्थ्य से अधिक शारिरिक या मानसिक कार्य,न्युट्रीशन की कमी ,डर या क्रोध इत्यादि से शरीर के अंगो एवं ग्रंथियो के कार्य पर असर पड़ता है जिससे उनका कार्य धीमा हो जाता है या बिगड़ जाता है । इससे उन ग्रंथियो से बनने वाले केमीकल या हार्मोन्स मे कमी आ जाती है ।इसके कारण शरीर का एसिड –अल्कली इत्यादि का बैलेंस बिगड जाता है और एकाध चीज की कमी से बीमारी आ जाती है । तो न्युरोथैरेपी में हम शरीर के विभिन्न अंगो पर खास प्रकार के दबाव द्वारा उन ग्रंथियो को उकसा कर उनके कार्य को सुचारू रूप से चलाते है ।“न्युरोथैरेपी में किसी भी प्रकार की दवाई या साधन का प्रयोग नही होता है ”। यह उपचार देते समय थेरेपिस्ट दोनो तरफ कुर्सियो का सहारा लेकर अपने पैरो से मरीज के हाथ ,पैर ,जाँघ इत्यादि पर दबाव देते है । मरीज को किसी भी प्रकार की तकलीफ नही होती है । यह उपचार एक दिन के बच्चे से लेकर सौ साल तक के उमर का हर एक व्यक्ति करवा सकता है ।बिल्कुल छोटे बच्चे को एवं बुजुर्ग तथा कमजोर व्यक्तियो को हाथ से एवं बडी उम्र के व्यक्तियो को पैरो से उपचार दिया जाता है ।
हर थैरेपी की अपनी मान्यताये होती है जिनके आधार पर वह कार्य करती है ।उदाहरण के लिये –बीमारियाँ क्यो आती है –इस विषय पर विभिन्न चिकित्सा प्रणालियो में क्या कहते है । यह देखे –
Allopathy – शरीर में बीमारी आने के पाँच मुख्य कारण मानते है –
संक्रमण पोषक तत्व की कमी डीजनरेशन
Wasting of tissue जन्मजात या जीन्स की गड़बड़ी से आयी बीमारियाँ
Ayurveda – शरीर में तीन दोषो में असन्तुलन के कारण ही बीमारियाँ आती है
वात(wind or Gas) पित(bile) कफ(mucus)
Homeopathy – vital force का कम होना या निम्न तीन ह्युमर्स में असंतुलन से बीमारियाँ आती है –
सोरा(Psora) सिफलिस(syphilis) साइकोसिस(Sycosis)
Biochemic system – शरीर के सैल्स के अंदर 12 साल्टस होते है । इनमें से किसी की भी कमी आने से बीमारियाँ आती है ।
Naturopathy- नैचुरोपैथी –हम अगर प्रकृति के नियमों को तोड़े या उनके साथ नही चलेंगे तो हमारे शरीर में टाक्सिन्स यानि अनावश्यक फालतू चीजे इकट्ठी हो जाती है ,जिससे शरीर की वाइटल फोर्स यानी जीवनी शक्ति को नुकसान पहुँचता है और शरीर बीमारियों का शिकार बन जाता है ।
Dr.lajpatrai mehra Neurotherapy – हमारे शरीर में बीमारी आने के निम्न कारण है –
या तो कुछ ग्रंथिया के ठीक से काम नही करते ,
या वे सही मात्रा में या सही समय में अपने केमीकल या हार्मोन्स नही बनाते ,
या उनके कैमीकल्स अपने उचित स्थान में नही पहुँचते है ।
अगर शरीर के पाचन संस्थान ,लंग्ज एवं किडनी ठीक से काम करे तो बीमारी आ ही नही सकती है ।
इनके अलावा न्युरोथैरेपी की अपनी कई मान्यताये है जिसके आधार पर उपचार किया जाता है । ये मान्यताये दो प्रकार के है –एक जो गुरू जी को अपने अनुभवो से प्राप्त है ,और दूसरे जो मेडीकल साइन्स की फिजियोलाजी के तत्वो पर आधारित है ,पर जिनकी व्याख्या को गुरूजी ने अपने द्रष्टीकोण से बदलकर एक औषध –रहित उपचार पद्धति के अंतर्गत उपयोग में लाये है –
वे मान्यताये जो गुरू जी की अपनी ओरिजनल सोच है –
1. नाभी ही शरीर का केन्द्र है । बीमारी चाहे कोई भी हो ,उसके साथ –साथ नाभी के आसपास कुछ खास जगहो दबाये या बिना दबाये ही दर्दे भी महसूस होगी । उन दर्दो को ठीक कर दो तो बीमारी अपने आप ठीक होती जायेगी ।
शरीर पर खास जगहो पर निश्चित समये के लिये ,निर्धारित सीक्वेन्स में प्रेशर डालकर हम नाभी के इन दर्दो को निकाल सकते है । इस प्रकार से या अन्य खास तरीको से दबाने या घिसने से ,हम शरीर के ग्लैंड को खास क्रम से उकसाकर विभिन्न कैमीकल बना सकते है । इन तरीको से जो ग्लैंट पहले काम नही कर रहे थे ,वे ठीक से काम करने में लगेंगे एवं बीमारी ठीक हो जायेगी ।
(चेतावनी – जिस प्वाइंट पर हम प्रेसर दे रहे है ,वह बिल्कुल एक्युरेट 6 सेकेंड टाइम का ही देना चाहिये ,6 सेकेंड से ऊपर नही जाना चाहिये ) ।
2. फेफड़े (लंग्ज ) ,किडनीज ,एवं एव्डोमन Abodmen (यानि पाचन संस्थान ठीक रहे तो कोई बीमारी आ ही नही
सकती है ।
3. गुरू जी सर्व श्रेष्ठ खोज है कि बड़ी –बड़ी बीमारियों आने का मुख्य कारण है –भोजन का ठीक से न पचना या उसका ठीक से अवशोषण न होना । खाना ठीक से न पचने से खाये हुये चीज हमें stool मल में अनपचा ही दिखाई देंगे । कैल्शियम एवं अन्य मिनरल्स तथा विटामिन्स ऐब्जोर्व नही होगे । कैल्शियम की कमी से माँस- पेशियो तथा ग्लैंडस ठीक से काम नही करेगी ।
4. जैसे ऊपर लिखा गया है ,शरीर में बीमारी आने के तीन मुख्य कारण है –ग्लैड्स का ठीक प्रकार से काम न करना ,या उन ग्लैंडस की कैमीकल्स का कम या ज्यादा होना ,या कैमीकल्स उचित जगह पर या उचित मात्रा में न पहुँचना । मूल कारण को ठीक करने से बीमारी अपने आप ठीक होगी ।
5. कई बीमारियों में गुरू ने “Pan” के प्वाइंट में दर्द पाया है । सो गुरू जी कहते है कि हम pan के प्वाइंट को विभिन्न तरीको से उकसाकर कई बीमारियो को ठीक कर सकते है ।
6. तजुर्वे से पता चला है कि बायी कमर के पीछे Mu0 प्वाइंट में दर्द का होना रक्त में पानी की कमी यानी एसिड बढ़ने की लक्षणो से जुड़ा है ।जब कि दायीं कमर के पीछे Liv0 प्वाइंट में दर्द का होना रक्त में पानी ज्यादा यानी एल्कली बढ़ने की लक्षणो से जुड़ा है ।
7. एसिड –एल्कली बैलेंस बिगड़ने से तरह –तरह के रोग आते है । ऐसिड बढ़ने से शरीर के बायी साइड में दर्दे हो सकती है । ऐल्कली बढ़ने से मसल्स कड़क हो जायेगी तथा भयंकर बीमारियाँ आती है ।
1. शरीर में कई मुख्य कैमीकल दो या दो से अधिक जगहों (अंगो ) में बनते है । एक जगह के बिगड़ जाने से वह कैमीकल्स नही बनेगा ।तब हम दूसरे जगह को न्युरोथैरेपी द्वारा उकसाते है ,जिससे वह कैमीकल्स निकलती है जिससे बीमारी ठीक हो जाती है ।
2.कई endocrine disorder को हम पिट्युटरी को उकसाकर के ठीक कर सकते है ,क्योंकि पिट्युटरी ग्लैंड का प्रभाव कई एन्डोक्राइन ग्लैंडस पर है ।
3. सभी हार्मोन के raw materials तीन ही तत्वो से बने है – cholesterol ,tyrosin amino acid ,एवं protein .इन तीन चीजों को ठीक से बनने एवं एब्जोर्व यानि अवशोषित होने के लिये पाचन संस्थान यानि digestive system का ठीक होना जरूरी है ,जिसे हम न्युरोथैरेपी द्वारा ठीक कर सकते है ।
4. ब्रेन के मुख्य कैमीकल्स मै से किसी एक की भी कमी आने से सेन्ट्रल नरवस सिस्टम बिगड़ जाता है । तब हम न्युरोथैरेपी द्वारा intestine का इन्टेरिक नरवस सिस्टम को उकसाकर ब्रेन की उस बीमारी को ठीक करते है । उदाहरण –पारकिन्सन ,मोटर न्युरान डिसार्डर इत्यादि ।
5. विटामिन K & folic acid को छोड़कर अन्य विटामिन शरीर में नही बनते है । उन्हे खाना से ही प्राप्त करना है । कुछ खास विटामिन की कमी के साथ पीठ के पीछे भाग में कुछ दर्दे भी जुड़ी हुयी है ।जैसे ही हम न्युरोथैरेपी उपचार द्वारा पाचन संस्थान को ठीक करते है ,एवं उन दर्द के प्वाइंट से दर्द निकालने लगते है , विटामिन की कमी की बीमारियों को बिना दवा के ठीक करते है ।
6. जब थायमस ग्लैंड के सैल्स अपने शरीर की सैल्स को ही मारने लगते है तो उसे ऑटो इम्युनिटी कहते है । इससे आयी बीमारियों को आटो इम्युन डिसार्डर (auto immune disorder) कहते है ऐसी बीमारियों में मरीजो को स्टीरौइड की दवाइयाँ दी जाती है जिनके दुष्परिणाम यानि साइडइफैक्ट होते है । न्युरोथैरेपी का कन्ट्रोल एड्रीनल ग्लैंड पर है जो कि थायमस को दबाता है । तो न्युरोथैरेपी में ऐसी बीमारियों को ठीक करने के लिये हम एड्रीनल कार्टेक्स को उकसाकर शरीर में ही स्टीरौइड बनाते है जिसके साइड-इफैक्ट नही होते है ।
7. योग से हमे पता है कि दायीं और बायी नाक से श्वांस लेने में फर्क है ,वैसे ही LMNT की अनुपम खोज है कि दोनो ओवरीज ,दोनो किडनीज ,एवं एड्रनल ग्लैंड के दोनो मेडुला -ये अलग –अलग काम करते है । इसके कुछ उदाहरण है –
Left kidney 80% acid फिल्टर करती है
Right kidney 80% alkali फिल्टर करती है
Right ovary 80% progestron बनाती है
Left ovary 80% oestrogen बनाती है
Right Adrenal medulla 80% Norepinephrin बनाती है
Left Adrenal Medulla 80% epinephrine बनाती है
गुरू जी ने यह खोज किया कि बायें हाथ की अनामिका उंगली का दर्द रक्त में ऐसिड बढ़ने से संबंधित है ।जब कि दाये हाथ की अनामिका उंगली का दर्द ऐल्कली बढ़ने से है ।
मुँह से श्वांस छोड़ते हुये “हा ” की आवाज जैसे निकालने से बायें हाथ की अनामिका उंगली का दर्द निकलेगा ।(left hand ring finger इसे सूचित करने के लिये 4th LT लिखते है )
मुंह से श्वांस छोड़ते समय ”हू”की आवाज जैसे निकालने से दायें हाथ की अनामिका उंगली का दर्द निकलेगा (left hand ring finger इसे सूचित करने के लिये 4th RT लिखते है )
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