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सोने और उठने के नियम
1. हमे लेटते या सोते समय पहले पाँव इकट्ठे कर लेना चाहिए और उन्हे घुटने से अंदर की तरफ मोड़ लेना चाहिए और हाथो को सहारा लेते हुए किसी भी करवट लेटकर फिर पाँव सीधी करना चाहिए । उठते समय भी सीधा नही उठना चाहिए ।पहले करवट ले ,फिर पाँव जो सीधे है उन्हे मोड़ ले ,और फिर हाथो का सहारा लेकर उठना चाहिए । यह इसलिए कि सीधा उठने से नाभी पर गलत असर पड़ सकता है तथा हृदय को रक्त की जरूरत बढ़ जाती है जो अपचन ,अस्थमा ,डायाबिटीज यो हार्ट प्रोब्लम आने का कारण बन सकता है ।
2. गर्दन के दोनो बाजु से subclavian arteries निकलती है जो कंधो के ऊपर के clavical हड्डियो के नीचे से निकलकर axilary तथआ brachial arteries द्वारा उंगलियो तक रक्त को पहुचाती है । जब हाथ नीचे की ओर होते है तो रक्त के प्रवाह में कोई अड़चन नही आती है । लेकिन अगर हम सिर के नीचे या सिर के ऊपर हाथ रखकर या आँखो को बाजु से ढक कर सोये तो उन रक्त नलिकाओ पर दबाव पड़ेगा जिसके कारण उन मे रक्त का प्रवाह ठीक से नही हो पायेगा । [बस या ट्रेन में सफर करते समय अगर ऊपर की पाइप को काफी देर तक पकड़कर खड़ा रहना पड़े तो उंगलियाँ सुन्न हो जाते है -उसका एक कारण भी यही है ]एवं इसका असर brachio-cephalic or thoracic arteries पर भी पड़ेगा जिसके कारण CHEST PAIN यानि सीने की दर्द आ सकती है । सो अगर आँखो पर कोई रोशनी आ रही है तो कपड़े से ढक लेना चाहिए पर बाजु को आँखो पर न रखे । (हाथ या उंगलियाँ का सुन्न होना उन लोगो मे ज्यादा होगी जिनमें विटामिन B12 की कमी है। )
3. पीनियल ग्रंथी ठीक रहने से ही शरीर के सारे काम- काज सुचारू रूप से चलते है । यह भारत मे रात को 10:30 औऱ 1 :00 एक बजे के बीच जागृत होती है । चाहे वह दस मिनट के लिए ही काम करे ,लेकिन वह तब ही काम करेगी अगप हम अच्छी गहरी नींद में हो । और गहरी नींद की अवस्था या स्थिति मे जाने के लिए आम आदमी को कम से कम दो घंटे चाहिये । इसलिये हमे 10:30 से पहले ही सोना चाहिये।
3. सोते समय ध्यान दे कि कमरे में पूरा अंधेरा हो । अंधेरे कमरे मे सोने से आयु या उमर लम्बी होती है । कछुआ अपनी गर्दन या मुंडी अन्दर रख कर सोता है अंधेरे मे। सो उसकी आयु दो –तीन सौ साल तक की होती है । अत: सोते समय NIGHT LAMP यानि जीरो वॉट बल्व की आदत न लगाये तो बेहतर है ।
4. सोते समय खिड़किये खोलकर सोना चाहिए ताकि हवा कमरे में आये । बन्द कमरे में सोने से कमरे में कारबन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है जिससे शरीर सारा दिन थका –थका सा रहेगा और काम करने को मन भी नही करेगा ।
5. मनुष्य को सोते समय शांत मन से सारे शरीर को ढीला रखकर सोना चाहिए । और दिमाग मे किसी प्रकार को तनाव रखकर नही सोना चाहिये । नही तो सुबह उठते समय दिमाग में तनाव ही रहेगा । सो हरि को याद करते हुए सब चिन्ताओ से मुक्त होकर ही सोना चाहिए ।
सोते समय पहले बांई करवट में लेटकर 4 श्वांस लेना ,फिर सीधा लेटकर 8 श्वास लेना ,और फिर दांई करवट में लेटकर 16 श्वांस लेना । ऐसा करने से ब्लड प्रेशर की बीमारी आने की संभावना कम होगी । [ यह इसलिये कि बाईं करवट में लेटने से सूर्य नाड़ी चलती है ,जब दायीं करवट में सोने से चन्द्र नाड़ी चलती है । योग चिकित्सक भी प्राणायाम द्वारा चन्द्र नाड़ी को उकसाकर हाई बी पी का इलाज करते है । ]
जिन्हे नींद नही आती है उनके लिए भी यह एक उत्तम उपचार है । साधारणत : सोलह श्वास के पहले ही नींद आ जायेगी । अगर इसके बाद भी नींद न आये तो ध्यान श्वांस में रखते हुये लम्बे श्वास लेना शुरू कर दे । छोटे या जल्दी श्वांस लेने से नींद लेने से नींद नही आती । लम्बे श्वास लेने से ब्रेन को ज्यादा मात्रा मे आक्सीजन मिलने पर शरीर रिलक्स होगा और नींद तुरंत आ जायेगी ।
6. सुबह उठते समय भी पूरा अंधेरा होना चाहिये । सो हमे सुर्य चढ़ने से पहले उठना चाहिए । उठते समय कमरे में काफी रोशनी हो तो सारा दिन सिर भारी रहेगा । सो जल्दी सोने एवं जल्दी उठने से शरीर स्वस्थ होगा ।
7. दिमाग में कोई बोझा या चिन्ता लेकर उठने से सारा दिन सिर भारी रहेगा । सो हरि का नाम लेकर उठे ।
8. चाहे सुबह ,दोपहर या शाम हो – बिस्तर से सोकर उठते समय पाँव तुरंत नंगी जमीन पर ना रखे । या चप्पल पर रखे या कुछ देर ठहरने पर नंगे जमीन पर रख सकते है । बिस्तर के अंदर आपके पैर गरम थे ,जब कि जमीन ठंडी है ,तो तुरंत उठते ही नंगी जमीन पर पांव रखने से आपको सर्दी हो सकती है ।
नहाने के नियम
9. नहाते समय पहले पानी का एक लोटा सिर पे डाले ,पर कानों पर नही आये यह ध्यान रहे । फिर गर्दन के नीचे पीठ और कंधो पर ,फिर सारे शरीर पर डालना चाहिये । अगर सिर पर डालते समय पहला लोटा कंधो या कान पर पडेगा ,तो एक गहरा साँस आ जाने के पानी कानो मे चला जाता है । यह पानी कानो की मैल को पतला कर देने के बाद कानो के अंदर की गर्मी के कारण एक bubble या बुलबुला बन जाता है ,जो कान के छिद्र पर आ जाने से सुनना कम हो जाता है । कई लोगो की आदत है कि बैठ कर नहाते समय सबसे पहले वे घुटनो पर पानी डालते है। इससे पिछली आयु में घुटनो की दर्दे आ जाती है – सो ध्यान रहे कि घुटनो पर पहले पानी ना डाले ।
10. हमे साबुन से नही नहाना चाहिए । उससे चमड़ी को नुकसान होता है । पसीना खुद साबुन –जैसा गुणकारी हे क्योंकि उसमे कई कीटाणुनाशक तत्व है जो कि साबुन लगाने के बाद खत्म हो जाते है । नहाने मे पहले सरसों तेल या कोई भी अन्य तेल इन जगहो पर अवश्य लगाना चाहिए – कानो के पीछे,नासिकाओ मे,नाभी ,गुदा और बगल यानि ARMPIT के अंदर । और उसके बाद सारे शरीर पर लगाये ,और बाद मे खाली सादे पानी मे नहाना चाहिये । ऐसा करने से शरीर में बदबू या किसी भी प्रकार का चर्म रोग नही होगा ।
खाने –पीने के नियम
11. हमे सुबह ठंडे पानी से नहाने के बाद ,कम से कम 45 मिनट तक कुछ नाश्ता नही करना चाहिए । शरीर को गरम होने में समय लगता है और पेट उस समय तक ठीक से काम नही करेगा जब तक कि सारा शरीर गरम नही हो जाये । और उस समय के अंदर नाश्ता करने से वह कम पचेगा और गैस की प्रोब्लम रहेगी । ध्यान रहे कि नहाने के बाद है नाश्ता करना चाहिये ।
12. खाना खूब चबाकर ही खाना चाहिये तथा जबड़ो की हलचल से ब्रेन की नर्व्ज ठीक से काम करेंगे जिससे पाचन संस्था ठीक से काम करेगी और खाना ठीक से पचेगा । अगर खाने में फैट्स ठीक से नही पचे तो उससे मोटापा भी बढ़ सकता है । खूब चबाने से लार भी ज्यादा निकलेगा जो कि चपाती ,चावल एवं अन्य मीठे पदार्थो को पचाने में मदद करती है ।
13. खाने के आधा घन्टे पहले या आधा घन्टे बाद में पानी पीना चाहिए । पेट मे एक एसिड बनती है जो कि दाल ,प्रोटीन्स ,इत्यादि को ठीक से पचाने के लिये जरूरी है । यह ऐसिड इतनी सख्त होनी चाहिये कि उस घोर ऐसिड में कोई कोई बैक्टीरिया या वाइरस जिन्दा न रह पाये । हमे खाना खाते समय पानी नही पीना चाहिये ताकि ऐसिड तथा लार की शक्ति कम न हो । लेकिन पानी का गिलास जरूर पास में रखना चाहिये ,क्योकि कभी –भी कोई निवाला या ग्रास गले में अटक सकता है । अगर ऐसा हो या अगर मुँह सूखा हो तो एक –आध घूंट पानी पी सकते है ।
14. LMNT में हम कहते है कि जोड़ो मे दर्द (JOINT PAIN) अक्सर रक्त में एसिड बढ़ने के कारण आती है । ऐसे लोगों को खट्टी चीजे –जैसे कि दही ,इमली ,टमाटर ,नींबू इत्यादि नही खानी चाहिए । जो फल कच्चे होने पर खट्टे होते है और पकने पर मीठे होते है जैसे – संतरा ,मुसंबी या मौसमी ,सेव ,आम इत्यादि –उन्हे नही खानी चाहिये । जो फल कच्चे होने पर कड़वे या फीके होते है और पकने पर मीठे होते है –जैसे कैला ,चीकु,पपीता ,सीताफल ,पेरू ,अंजीर ,आँवला इत्यादि-उन्हे शौक से खा सकते है।
15. नैचुरोपैथी में उपचार के तौर पर निंबू शरबत पीने के लिये कहते है – लेकिन वे उपवास करने के लिये भी तो कहते है । तो लोग उपवास करते नही ,मगर भोजन के साथ नींबू ले तो शायद दर्दे बढ़ेगी । वैसे ही कहा जाता है कि कोकम एसिडिटी के लिये उत्तम है । लेकिन यह देखना है कि उससे जोड़ो में दर्दे आती है या नही । हर एक व्यक्ति को सभी चीज एक जैसा प्रभाव करेंगे ,ऐसा भी नही है । यह तजुर्बे या अनुभव की बात है एवं आयुर्वेद में भी यह बताते है कि खट्टी चीजे खाने से दर्दे बढ़ती है ।
16. हमे ऋतु के फल (Seasonal fruits) और सब्जियाँ ही खाना चाहिये – जो उस प्रदेश या प्रांत में उगते हों । यह इसलिये कि समय और जगह के अनुसार हमारे लीवर के कैमीकल्स बदलते रहते है और वे उस ऋतु एवं स्थल के चीजो को पचने के लिये बनते है , सो अन्य चीजो को पचने में गड़बड़ी होगी । जैसा कि अप्रैल महीने के गर्मी मे ही आम आते है – वे उस समय और ऋतु के अनुसार उस प्रांत में रहनेवालों के लिये लाभदायक है । और अगर दिसंबर महीने में आम खायेंगे तो अवश्य बीमार पड़ेगे । उस महीने में बहुत ठंडी होती है ,उस समय हमें ठंडे मौसम के फल –माल्टा,गाजर ,सेव बगैरह खानी चाहिये ।
पानी पीने के नियम
17. कुदरत ने मनुष्य को सब कुछ दिया है ,जिस मे पानी एक है ,जो फ्री यानी मुफ्त है । हमारे शरीर मे पेशाब ,पसीना और साँस द्वारा काफी पानी निकल जाता है जिसे बैलेंस करने के लिये मनुष्य को कम से कम दो लीटर पानी तो अवश्य पीना चाहिये ।पानी कम पीने के कारण बहुत सी बीमारियाँ आती है –जैसे कब्जी ,रूमेटिज्म ,लो बी पी ,ऐसीडिटी इत्यादि ,जिन्हे हम ऐसिड की बीमारियाँ कहते है । एक बार बीमारी आने के बाद फिर पानी पीने से कम लाभ होता है । लोग पूछते है कि हमने चाय ,ठंडे पेय इत्यादि पिया है ,क्या उनमें पानी नहीं है ? वे सभी पानी से ही बने है ,लेकिन शरीर उन्हे भोजन ही समझता है । कोई भी अन्यपेय पानी की जगह नही ले सकता है । सो रोज हमे शुद्ध पानी के रूप में दो लीटर पानी अवश्य पीना चाहिये ।
18. पानी बैठकर ही पीना चाहिये नही तो पिंडलियो मे दर्दे आ जायेगी – यह अनुभव से आया है । जब हम कुछ खाते या पीते है ,रक्त का बहाव पेट की तरफ ज्यादा होगा तो उस समय पैरो को कम रक्त पहुँचेगा । सो माँसपेशियों में कमजोरी आने के कारण वे दर्दे करने लगते है ।
19. सोये पड़े उठते ही तुरंत ठंडा पानी पीने से भी कुछ लोगो को कफ या नाक बह सकती है । हाँ ,गुनगुना पानी पी सकते है । या पाँच मिनट ठहर कर सादा पानी या मटके का पानी पी सकते है ।
20. हमे सादा पानी या मटके का पानी ही पीना चाहिये । फ्रिज का पानी शरीर के लिये हानिकारक है । क्योकि उस ठंडे पानी को गरम करके शरीर के टैम्प्रेचर तक लाने के लिये रक्त को ज्यादा काम करना पड़ता है । जिसके लिये energy यानि ऊर्जा शक्ति खर्च करना पड़ता है जो शरीर के लिये फालतू काम है ।
21. दूध या चाय पीने के तुरंत बाद पानी पीने से एल्कली बढेगी जिससे लूज मोशन्स या पतली लेटरिंग या दस्त आ सकती है । और मसूड़े कमजोर हो सकते है ।
22. लूज मोशन (loose motion) [दस्त ] आने पर सादा पानी नही पीना चाहिये ,नही तो ज्यादा मोशन आयेंगी । पानी में नींबू या कागदी निचोड़कर उसमें ज्यादा मात्रा में नमक और शक्कर मिलाकर उसे घूंट-घूंट पीना चाहिये ।खाली नमकीन पानी पीने से भी लूज मोशन बढ़ सकती है ।
23. जिस पानी में बुलबुले या bubbles हो उसे नही पीना चाहिये । बुलबुले का मतलब उसमें कोई गैस घुला हुआ है । तो वह पेट में जाने के बाद तकलीफ देगा , शरीर के लिये हितकारी नही होगा ।
औरतो के लिये
24. औरते तथा लड़कियो को पाँव के ऊपर पाँव रखकर नही सोना चाहिये । क्योंकि ऐसे सोने से यूटेरस (बच्चे दानी ) के माँस-पेशियो पर एक तरफा खिचांव आता है । इससे उनको सफेद पानी जाने लगता है । और मासिक धर्म भी बिगड़ जाता है ,सो सीधी टांगो से सोना चाहिये ।
25. गर्भवती स्त्री को किसी भी प्रकार की गोलियाँ नही खाना चाहिये – जैसे दर्दनाशक गोलियाँ(pain killers),ऐन्टीबायोटिक्स (antibiotics),या स्टीरॉइड्स (steroids) इत्यादि । क्योंकि इनसे बच्चे को जन्म के बाद ज्वान्डिस(jaundice) यानि पीलिया हो सकता है । प्रेगनेन्सी के समय माँ जो भी खायेगी उसका असर बच्चे पर पड़ेगा ही । इन गोलियो के दुष्प्रभाव बच्चे के ब्रेन ,किडनी या थायरौइड ग्लैंड पर पड़ सकते है । सो गुरुजी विश्वास के साथ कहते है कि मन्द बुद्धि के बच्चे पैदा होने का एक मुख्य कारण इन गोलियो का दुष्प्रभाव है ।
26. मैन्सस में ज्यादा ब्लीडिंग हो तो उससे शरीर में कैल्शीयम की कमी न हो इसलिये स्त्री को कम से कम पौना लीटर गुनगुना दूध पीना चाहिये । लेकिन दूध अधिक गरम नही होना चाहिये ,क्योकि उससे ब्लीडिंग और बढ़ सकती है । रात को एक खारक (खजूर )एक कप दूध में डालकर फ्रिज में रखना । सुबह उस दूध को खारक के साथ ही उबालकर उस खारक को खाकर दूध पी ले ।
27. जैसे ऊपर कहा गया है ,बच्चो को नहलाते समय भी ऐसा ही करे कि पहले सिर पर ,फिर कंधो पर ,फिर सारे शरीर पर पानी डालता चाहिये ।
28. कुछ लोग दरवाजे पर बाहर के लोगो के लिये म्युजिकल बैल्ल (musical bells) – यानि संगीत बजाने वाली घंटियाँ –लगवाते है । सुबह सोये पड़े अगर दूधवाले ने यह घंटी बजा दी तो तपाक से उठने पर कुछ लोगो के कान मे अपने आप घंटियाँ बजने लगते है – क्योकि उस बैल्ल की आवाज बहुत तीव्र होती है – इससे भी वरटिगो (vertigo) आ सकती है । सो घरों में बजर ही लगाना चाहियें, न कि म्युजिकल बैल्ल ।
29. रात का भोजन ऐसे समय तक कर लेना चाहिये कि खाना खाने और सोने के समय में कम से कम दो घंटो का अन्तर होना चाहिये ,ताकि खाना जो सौलिड फार्म (solid form) यानि ठोस रूप में खाया होता है ,वह पानी की तरह पतला होकर ठीक से पच जाये । खाने के तुरन्त बाद अगर संभोगिक क्रिया या इन्टरकोर्स (intercourse) कर ली जाये तो पति और पत्नि दोनो को गैस्ट्रिक प्रोब्लेम (gastric problem) आ जायेगी । इसके अलावा पेट भी खराब या बिगड़ जायेगा क्योकि जो रक्त पाचन तंत्र के लिये चाहिये ,वह अन्य कार्यो के लिये उपयोग किया जा रहा है।
23. बुखार में या बुखार आने के कुछ दिनो तक लिवर एवं गौल ब्लैडर बिगड़े रहते है या ठीक से काम नही करते । उस समय में मैथुन करने से शरीर में और कमजोरी आ जायेगी ,फीवर भी बढ़ सकता है ।
कुछ अन्य सुझाव
24. आँखो के बाजु में दो छोटे छिद्र होते है ,जिन्हे लैक्रीमल डक्टस (lacrimal ducts) कहते है । इनको तीस बार धीमे –धीमे सहलाने से आँखो के लेन्स के अंदर का प्रेशर कम हो जाता है और ग्लाउकोमा से बचाया जा सकता है ।अगर ग्लाउकोमा हो तो वह भी इसी उपचार से ठीक होता है –इससे कई पेशेंट लाभ उठा चुके है । जिन्हे आँखो में लगातार पानी निकलता रहे – उनके लिये भी यह उत्तम है ।
25. सर्दी होने पर नाक को बहुत जोर से या ज्यादा साफ नही करना चाहिये । अगर साफ करना हो तो दोनो नासिकाओ को खुला रखकर ही साफ करना चाहिये । अगर नाक बन्द हो तो और आप एक को बन्द रखकर दूसरे से जोर से हवा निकालने की कोशिश करें, तो जो म्युकस या कचड़ा है ,वह कान की नाड़ी के अन्दर घुस जायेगा जिससे सुनना बन्द हो जायेगा या कम सुनने लगेगा ।
26. अगर नाक से पानी बह रहा हो ,तो दस मिनट तक बांयी करवट में लेटने से सूर्य नाड़ी चलने लगेगी और नाक से पानी का निकलना बन्द हो जायेगा । जिनको सुबह –सुबह ठंडी या एलर्जी के कारण ऐसा होता हो तो ,उन्हे सोये पड़े उठते समय दस मिनट तक बांयी करवट में सोकर बाद में उठने की आदत बना ले तो कुछ ही दिनो के अंदर इस परेशानी से मुक्त हो सकते है ।
27. क्रेम्पस यानि नस चढ़ जाने पर दोने हाथो को सिर के ऊपर ले जाकर चुटकी बजाने से क्रेम्पस निकल जाते है ,यह अनुभव की बात है । बैसे ही ,उबासी आने पर मुँह के सामने चुटकी बजाने पर मुँह का खुले का खुला रहना या jaw यानि जबड़े अटक जाना इत्यादि नही होगा ।
28. कानो के अंदर एक WAX बनता है जिससे कान की रक्षा होती है । सो कानो मे मैल नही निकालना चाहिये । क्योकि आप निकालते जायेगे और शरीर बनाता जायेगा । कानों में तेल की बूंद टपकाना नही चाहिये क्योकि उससे कान के पर्दे के छिद्र या HOLE को नुकसान या हानि हो सकती है । या वह छिद्र बन्द हो सकता है ,जिससे सुनना कम हो जाता है ।परन्तु आप तेल को कापुस (COTTON) से हल्के से लगा सकते है ।
29. ऐन्टीबायोटिक्स की दवाइयाँ खाने से या चाय ,कॉफी ,सिगरेट इत्यादि में जो कैफीन या निकोटीन होता है ,उससे कानो के नस कमजोर हो जाते है जिससे सुनना बन्द हो सकता है । इसके अलावा या दवाइयाँ शरीर के विटामिन के (K) बनाने वाले बैक्टीरिया को नुकसान पहुँचाते है । अगर शरीर में विटामिन K की कमी हो, तो रक्त का क्लौटिंग नही होगा सो शरीर में कहीं भी किसी कारण से रक्त बहने लगे तो (HEMORRHAGE) वह बन्द ही नही होगा । औरतो में यह प्रोब्लेम हो तो उनके जो चार दिन के बाद बन्द हो जाने चाहिये ,वे बन्द ही नहीं होंगे । रक्त की कमी के कारण कमजोरी ,चक्कर आना यो अन्य बीमारियाँ आयेंगी ।
30. कान के पीछे तीन नलिकाये है जिन्हे SEMI CIRCULAR CANALS कहते है । इनमें एक पानी जैसा तरल फ्लूइड भरा रहता है जो हमारे शरीर का इक्वीलिव्रीयम (EQUILIBRIUM) यानि बैलेंस (BALANCE ) या शरीर का संतुलन बनाये रखता है । अगर हम उठते समय तपाक से यानि जल्दी से उठे तो उनमे से किसी में से पानी बाहर निकल जाने से बहुत चक्कर आ सकते है जिसे वरटीगो की बीमारी कहते है । सो उठते समय हरि का ध्यान करते हुये पलंग पर कम से कम तीस सेकेंड बैठ कर उठना बेहतर है ।
31. कानो के छिद्र को चारो दिशाओ मे अन्दर से बाहर की तरफ एक एक बार दबाने से कान खुल जाते है ,और अगर तीन- तीन बार चारो दिशाओ में दबाया जाये तो हाई ब्लड प्रेसर कम हो जाता है ।
32. हर बार जब हेयर डाई यानि बालो के रंग बदलने का साधन उपयोग करे ,तो उसका कैमीकल चालीस दिन तक पेशाब में आता रहता है । इस डाई से एक प्रकार का कैंसर भी आ सकता है [और क्यों न हो ? डाई पेशाब मे आता है ,इसका मतलब किडनीज को –अपने नौरमल कार्य के अलावा –चालीस दिन तक इस डाई को निकालने का EXTRA यानि फालतू काम करने के लिये मजबूर किया जाता है ।रक्त का सारा कचरा तो किडनीज को ही बाहर निकालना पड़ता है । जरा सोचे कि जो लोग कई सालो से हर महीने या बार-बार डाई का उपयोग करते है ,उनके किडनीज को कितना ज्यादा काम करना पड़ेगा ? फिर वे किडनीज कमजोर क्यों न हो ? अगर किडनीज कमजोर हो जाये तो कैंसर या अन्य बड़ी बीमारियाँ क्यो नही आयेंगी ?]
33. वीरासन में ध्यान लगाने से CONCENTRATION POWER यानि एकाग्रता शक्ति बढ जाती है ,जिससे याददाश्त बढ़ जाती है । बच्चो को पढ़ाई में बहुत लाभ होता है । हरि को पाने के लिये अच्छा है । जिनको फिट्स आती हो उन्हे हमारे LMNT उपचार के अलावा यह आसन सिखा देने से बहुत लाभ होगा ।
34. पैर के अंगुठे और प्रथम अंगुली के बीच में एक नाड़ी है ,जो अगर दब जाये तो विषय –भोग यानि वासना-पूर्ति की भावना दब जाती है या समाप्त हो जाती है ।इसीलिये ही साधु लोग अंगुठे वाली खड़ाऊं डालते थे जिससे वह नाड़ी दब जाती थी तो ऐसे भावना नही आते ।
35. गायत्री मंत्र चौबीस अंक का है । इसके शुद्ध उच्चारण करने से हमारे शरीर के चौबीस वाल्व ,चौबीस बड़ी नाड़ियाँ तथा चौबीस छोटी नाड़ियाँ जो है –सब खुल जाती है ।
36. हम जो भी खाये ,हमेशा चौकड़ी लगाकर या पलाठी या पालती मारकर ही खाना चाहिये ताकि रक्त का बहाव पेट की तरफ अधिक हो । यह इसलिये है कि कुदरत के नियम के मुताबिक खाने के बाद पेट और पाचन संस्थान के अंगो में अधिक मात्रा में रक्त की बहाव होती है क्योंकि उस समय उन अंगो को ज्यादा रक्त की जरूरत है । अगर कुर्सी पर बैठकर खाये तो खाते वक्त पैर लटके रहेंगें,तो पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण रक्त का बहाव पैरो की ओर ज्यादा रहेगा जिसके कारण पाचन संस्थान की कार्यो के लिये पर्याप्त रक्त नही मिलेगा । इसीलिये भोजन बैठकर ही करना चाहिये वह भी पालती मारकर । खड़े होकर खाना खाने से बचे इससे भोजन का पाचन सही तरीके से नही हो पाता है ।
37. भोजन के तुरन्त बाद ही चलना या कोई अन्य भारी काम करना पड़े तो पाचन संस्थान के अलावा हाथ –पैरो को भी ज्यादा रक्त की जरूरत होगी ,जिसे पूरा करने के लिये हृदय को ज्यादा काम करना पड़ेगा और इससे शरीर को तकलीफ होगी । यही कारण है कि हर व्यक्ति को खाना खाने के 20 मिनट बाद तक चलना –फिरना नही चाहिये –पर अगर वे वज्रासन में बैठे तो बहुत अच्छा है ।मुख्यत: हृदय रोगियो को तथा जिनको चलने पर सांस फूलती हो –उन्हे यह चेतावनी जरूर करनी है ।
स्कूल –कालेज के बच्चो को अक्सर सुबह नाश्ता के तुरंत बाद बस इत्यादि पकड़ने के लिये भागना पड़ता है । अगर छोटी उम्र से ही उन्हे यह ट्रेनिंग दी जाय कि वे नाश्ता कुछ दैर पहले ही खा ले और जो भी अन्य छोटे –मोटे कार्य जो बैठकर कर सकते है ,उन्हे नाश्ता के बाद करने की आदत डाले ,तथा कुछ देर बैठने के बाद आराम से स्कूल के लिये निकले ,तो बचपन की कई बीमारियो मे वे बच सकते है । वेसै ही आफिस जाते समय इस आदेश का ध्यान रखा जाये तो स्वस्थ्य जल्दी बिगड़ेगा नही ।
38. खाना खाने से पहले हाथ अच्छी तरह से साफ कर लेने के बाद खाना चाहिये। हमारे बूढ़े लोग आचमन करते हुये खाने की थाली के चारो तरफ पानी डालकर खाना शुरू करते थे – यह इसलिये है कि कोई रेंगता हुआ कीड़ा ,या मकौड़ा ना खाया जाये ,क्योंकि अगर थाली के बाहर पानी पड़ा हो तो वह थाली में नही जा सकता है ।
39. खाने के बीच में या तुरन्त बाद में पानी नही पीना । तो भी भोजन के समय पानी अवश्य पास में रखना चाहिये ताकि कभी नवाला अटकने पर या ठसका लगने पर काम आये । भोजन करने के आधे घण्टे बाद एक गिलास पानी पी सकते है और उसके बाद हर घंटे –डेढ़ घंटे बाद एक गिलास पानी पीना -ऐसे दिन में कम से कम दस-बारह गिलास पानी पीना चाहिये ।
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